भारत के MSMEs को डिजिटल परिपक्वता को प्राथमिकता क्यों देनी चाहिए
भारत का दीर्घकालिक आर्थिक विजन एक उच्च-विकास गति को बनाए रखने पर आधारित है। वर्ल्ड बैंक के विश्लेषण के अनुसार, भारत को 2047 तक उच्च-आय वाला देश बनने के लिए अगले दो दशकों तक औसतन 7.8% की वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर बनाए रखनी होगी। इस लक्ष्य की कुंजी हैं भारत के 6.3 करोड़ माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज (MSMEs), जो देश की GDP का लगभग 30% और निर्यात का 50% योगदान देते हैं। हालांकि, इस क्षेत्र की वास्तविक क्षमता अभी भी पूरी तरह से दोहन नहीं हो पाई है।

डिजिटल विभाजन: एक बड़ी चुनौती
आज भारत का MSME सेक्टर दो हिस्सों में बंटा हुआ है—एक ओर वे कंपनियाँ हैं जो डिजिटल तकनीक को अपनाकर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे हैं जो अभी भी पारंपरिक तरीकों से काम कर रही हैं। केवल 12% MSMEs ही रणनीतिक निर्णय लेने के लिए डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहे हैं। अधिकांश इकाइयों को पूंजी की कमी, नीतिगत जानकारी का अभाव और स्किल गैप जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
इसका सीधा असर भारत की विकास संभावनाओं पर पड़ता है। जिन MSMEs ने डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन को अपनाया है, उन्होंने बिक्री में 80% तक की वृद्धि और उत्पादकता में 40% तक का सुधार देखा है। इसके विपरीत, पारंपरिक MSMEs न केवल वैश्विक बाजारों से कटे रहते हैं, बल्कि वित्तीय संकटों के प्रति अधिक संवेदनशील भी होते हैं।
वैश्विक उदाहरण: प्रेरणा के स्रोत
अन्य औद्योगिक राष्ट्रों ने अपने MSME सेक्टर को डिजिटल बनाने के लिए उल्लेखनीय प्रयास किए हैं।
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सिंगापुर ने “Productivity Solutions Grant (PSG)” के तहत SME के डिजिटल एडॉप्शन खर्च का 50% तक कवर किया है।
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“SMEs Go Digital” पहल के तहत AI टूल्स और प्रशिक्षण सब्सिडी के साथ उपलब्ध कराए जाते हैं।
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दक्षिण कोरिया ने रणनीतिक तकनीकों के लिए R&D समर्थन को 38% से बढ़ाकर 50% कर दिया है।
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चीन ने अपने ई-कॉमर्स नियमों के माध्यम से SME सेक्टर को डिजिटल बनाकर वैश्विक व्यापार में 68% तक की वृद्धि दर्ज की है।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि डिजिटल तकनीक के प्रयोग से संचालन क्षमता, अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और लागत दक्षता में भारी सुधार होता है।
भारत में डिजिटल MSMEs का प्रदर्शन

भारतीय MSMEs जो डिजिटल रूप से परिपक्व हैं, उनमें 65% तक टर्नओवर में वृद्धि देखी गई है, और 54% ने मुनाफे में बढ़ोतरी दर्ज की है। Google-KPMG की रिपोर्ट बताती है कि डिजिटल रूप से सशक्त बिजनेस, ऑफलाइन बिजनेस की तुलना में दोगुनी गति से बढ़ते हैं। डिजिटलीकरण से:
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ओवरहेड लागत में कटौती होती है,
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इन्वेंट्री और लॉजिस्टिक्स में अनुकूलन होता है,
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ग्राहक डेटा में पारदर्शिता मिलती है,
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और सेल्स साइकल छोटा होता है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म से कर्ज तक पहुंच आसान होती है, और फिनटेक-सहायता प्राप्त ऋण से MSMEs को कार्यशील पूंजी मिलती है। इसके बावजूद, केवल 57% MSMEs ही AI को अवसर के रूप में देखते हैं, और उससे भी कम इकाइयाँ इसे लागू करने के लिए आवश्यक कौशल रखती हैं।
डिजिटल बदलाव की बाधाएँ
डिजिटल परिवर्तन के स्पष्ट लाभों के बावजूद कई संरचनात्मक बाधाएँ बनी हुई हैं:
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30% MSMEs ने उच्च तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर लागत को बड़ी चुनौती बताया,
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36% ने नई तकनीक अपनाने में झिझक जाहिर की,
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65% MSMEs में स्किल की कमी और टूल्स व संसाधनों की जानकारी का अभाव पाया गया (NASSCOM-Meta अध्ययन)।
इसके अतिरिक्त, साइबर सुरक्षा का खतरा भी एक बड़ा मुद्दा है। 40% MSMEs डिजिटल फ्रॉड और वित्तीय जोखिमों के लिए संवेदनशील हैं। सरकार द्वारा शुरू की गई कई योजनाओं की जानकारी MSMEs तक नहीं पहुंच पा रही है।
समाधान: समन्वित प्रयास की आवश्यकता

भारत में इस डिजिटल खाई को पाटने के लिए एक व्यापक, बहुस्तरीय रणनीति की आवश्यकता है:
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वित्तीय समर्थन: डिजिटल अपग्रेडेशन के लिए लक्षित क्रेडिट स्कीम्स को लागू करना। सरकार पहले ही TEAM (Trade Enablement & Marketing Scheme) और Technology Upgradation Schemes के जरिए इस दिशा में कार्यरत है।
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डिजिटल स्किल ट्रेनिंग: सरकारी-निजी भागीदारी से स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स शुरू करना चाहिए, जहाँ MSMEs को तकनीकी प्रशिक्षण और ऑन-ग्राउंड सपोर्ट दिया जाए।
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विशेषज्ञ सहायता केंद्र: पूर्व उद्यमियों, टेक विशेषज्ञों और वित्तीय सलाहकारों को व्यापार सहायता केंद्रों में शामिल किया जाना चाहिए, जो MSMEs को सेक्टर-विशेष मार्गदर्शन दे सकें।
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साइबर सुरक्षा और नीति जागरूकता: डिजिटल जोखिमों से बचाव के लिए साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क को मजबूत करना होगा और डिजिटल प्रोत्साहन योजनाओं पर आधारित जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
निष्कर्ष: MSMEs का डिजिटल भविष्य ही भारत का भविष्य है
भारत की आर्थिक वृद्धि की गति इस बात पर निर्भर करेगी कि उसका MSME सेक्टर कितनी तेजी से डिजिटल परिवर्तन को अपनाता है। जो MSMEs तकनीक को गले लगाएंगे, वही भारत के अगले आर्थिक उछाल का नेतृत्व करेंगे। सरकार, निजी क्षेत्र और स्वयं उद्योगों को मिलकर एक समावेशी डिजिटल इकोसिस्टम बनाना होगा, जहाँ हर छोटे व्यवसाय को तकनीक तक समान पहुंच और प्रशिक्षण मिले।
डिजिटल परिपक्वता अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है। यही बदलाव भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में निर्णायक भूमिका निभाएगा।